Wednesday, December 10, 2014

दिसम्बर

पिछले आठ दस दिनों में काफी सारा नया साहित्य पढ़ा। कवितायें, कहानियाँ, ब्लौग्स.... बस पढ़ती ही रही... जानती हूँ तुम्हें नफरत थी इस आदत से, पर क्या करूँ, मुझे तो प्यार था। जानते हो इस सारे नए लिटरेचर मे कॉमन क्या है? दिसम्बर... दिसम्बर पर जितना लिखा गया है उतना शायद ही किसी और महीने के बारे मे लिखा जा रहा हो इन दिनों...
दिसम्बर इज़ राइटर्स न्यू फागुन ऐन्ड सावन।
और दिसम्बर को इतना फूटेज मिलने का कारण लिखते लिखते समझ आया।
दिसम्बर मे भी तो वही बात है जो तुममे है। हम दिल अक्सर उन्ही से लगाते हैं जो छोड़ के जाते हैं, चाहे तुम हो, चाहे दिसम्बर।


Tuesday, December 2, 2014

बड़ी बड़ी बातें

“ये इश्क़ विश्क़ का कीड़ा बहुत कुत्ती चीज़ है लाला, एक बार लग जाए तो तबाही गारंटी है।“ ये ब्रम्ह्ज्ञान बाँटते हुए एक लंबा कश खींच कर अपने दोस्तों के बीच वो अपना भौकाल टाईट रखता था। “बाबा, अपना सही है, अकेले ही बहुत खुश है। ये रिलेशनशिप वगैरह के फर्जी चक्कर मे पड़ना ही नहीं हमको। साला, लड़की के हज़ार नखरे उठाओ, उसके घर-वर के झऊआभर चक्कर काटो, हर रोज़ की मान मनौवल, फिर अगर सेट हो गयी तो घुमाओ फिराओ, पैसा उड़ाओ और ना सेट हुई तो बैठो आँसू बहाते, साला देवदास बन के शेर-ओ-शायरी, सुट्टा, दारू मे टोटल ज़िंदगी बर्बाद। खाली चूतियापा है ई सब, और कुछ नहीं।” एक और कश खींचते हुए अपने आस पास वालों के बीच खुद को दुनिया का सबसे बड़ा फिलोसोफ़र समझने वाला वो लड़का जब रात को अपने बिस्तर पर लेटता है तो उसकी आँखों मे एक ही सपना पलता है। बनारस, इलाहाबाद, कानपुर, रायबरेली या बलिया वाली, अपने गली, मोहल्ले, चौराहे या नुक्कड़ वाली, उस एक लड़की को देख लेने का सपना, उसका नाम पूछने का सपना, उसके साथ बातें करने का सपना.....

छोटे छोटे शहरों मे ऐसी बड़ी बड़ी बातें अक्सर होती रहती हैं....