tag:blogger.com,1999:blog-52751196857294538222024-03-20T02:40:17.018+05:30ankaheeमेरे मुखर से मौन होने की कहानी जो अब मेरी लेखनी बोलती है.…. moulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.comBlogger47125tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-82169503584664518622016-02-17T18:43:00.000+05:302016-02-17T18:43:46.510+05:30
चार रास्ते, एक ही से,
चारों सही, चारो अलग,
किसी एक को जो चुना तो,
कभी मालूम भी नहीं होगा
कि बाकि तीनो रास्तों पर चलने से,
ज़िन्दगी कहाँ ले गयी होती
सब कुछ मिल जाने पर भी जो
थोड़ा थोड़ा बाकी रह जाता है ना
Crossroads- शायद इसीलिए मेरी फैन्टसियों में
crossroads सबसे ऊपर हैं....
moulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-5458975788683002452014-12-10T20:18:00.001+05:302014-12-10T20:18:18.192+05:30दिसम्बर
पिछले आठ दस दिनों में
काफी सारा नया साहित्य पढ़ा। कवितायें, कहानियाँ, ब्लौग्स.... बस पढ़ती ही रही... जानती हूँ तुम्हें
नफरत थी इस आदत से, पर क्या करूँ, मुझे तो प्यार था। जानते
हो इस सारे नए लिटरेचर मे कॉमन क्या है? दिसम्बर... दिसम्बर पर जितना लिखा गया है उतना
शायद ही किसी और महीने के बारे मे लिखा जा रहा हो इन दिनों...
दिसम्बर इज़ राइटर्स न्यू
फागुन ऐन्ड सावन।
और दिसम्बर को इतना फूटेज
मिलने का moulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-48455340858816019782014-12-02T13:15:00.000+05:302014-12-02T13:15:05.285+05:30बड़ी बड़ी बातें
“ये इश्क़ विश्क़ का कीड़ा
बहुत कुत्ती चीज़ है लाला, एक बार लग जाए तो तबाही गारंटी है।“ ये
ब्रम्ह्ज्ञान बाँटते हुए एक लंबा कश खींच कर अपने दोस्तों के बीच वो अपना भौकाल
टाईट रखता था। “बाबा, अपना सही है, अकेले ही बहुत खुश है। ये रिलेशनशिप वगैरह के
फर्जी चक्कर मे पड़ना ही नहीं हमको। साला, लड़की के हज़ार नखरे उठाओ,
उसके घर-वर के झऊआभर चक्कर काटो, हर रोज़ की मान मनौवल,
फिर अगर सेट हो गयी तो घुमाओ फिराओ, पैसाmoulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-17066164239600178432014-11-28T21:47:00.002+05:302014-11-28T21:52:28.939+05:30 अगरबत्ती
अब तुम खुद बताओ कैसे
जलाऊँ अगरबत्ती। घर से निकलते वक़्त मम्मी ने पचास हज़ार बार कहा था,
हर रोज़ शाम को भगवान के सामने दो अगरबत्तियाँ जला दिया करना। उस वक़्त ना ध्यान
दिया ना ही सोचा था कि दो अगरबत्तियाँ जलाना भी इतना मुश्किल होगा। नास्तिक थोड़े
ही हूँ मैं.... बहुत विश्वास है भगवान मे मेरा लेकिन भगवान को एक कमोडिटी बना कर
एक कोने मे सजा कर अपने विश्वास को ओब्जेक्टिफ़ाई मैं नही कर सकती।
शामे तो इस नएmoulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-50510157080410390532014-11-28T00:25:00.000+05:302014-11-28T00:25:06.545+05:30दोहराव
कल शाम फिर देखा तुमको
मैंने, वहीं, गुप्ता चाय स्टॉल के पास... तुम्हारा पुराना
अड्डा... आजकल अक्सर दिखने लगे हो यहाँ फिर से। शायद कुछ दिनो से तुम भी लखनऊ मे
हो।
तुमको देखते ही क्या लगा,
क्या याद आया, पता नहीं। बस ऐसा लगा जैसे अपना होकर पराया हो
चुका ये शहर 5-10 मिनटों के लिए फिर से अपना हो गया। तुम्हारे दिखते ही पिछले दो
दिनो से उस वेज कबाब रोल वाले के ठेले की आड़ मे छुप रही हूँ। कितनी सारी moulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-62208459062379004372014-11-17T23:31:00.000+05:302014-11-17T23:31:32.665+05:30तुम्हारी यादें
मन के भगोने के तलुए से
चिपकी बैठी....
तुम्हारी यादें....
बहुत खुरच खुरच के निकाला,
पर मुई जली तुम्हारी
यादें...
छूटी ही नहीं....
चिपकी रहीं….
भर कर पानी भगोने मे
रख दिया था कुछ साल
पहले...
अब लगता है यही समय है
जली खुरचन छुड़ाने का....
अब तो ढीली पड चुकी हैं...
moulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-72195909056580138912014-08-25T17:20:00.000+05:302014-08-25T17:20:44.455+05:30जून महीना
किसी
जून महीने मे,
कई
बरस पहले,
खूब
जम के बरसा था मानसून जिस साल,
घर
के बाहर जमा हो गया था कित्ता सारा पानी,
बिलकुल
गंगा जी जैसा,
घुटनों
तक, घुटनों से भी ऊपर,
सबको
कित्ता चाव चढ़ा था ना
कागज़
की नावों की रेस लगाने का,
मुझसे
लाख गुना बेहतर थी नाव तुम्हारी,
इसलिए
मन ही मन दे डाली थीं मैंने,
हज़ारों
बददुआ उस मुई नाव को,
फिर
शुरू हुई जब रेस हमारी सब नावों की,
मैंने
तुमको घूर कर देखा थाmoulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-34438263883499822462014-08-24T18:55:00.000+05:302014-08-24T18:55:12.325+05:30विश्वमित्रा(भाग अंतिम )
हमारी इच्छाएँ हमारे लोभ कब बन
जाती हैं हमे पता ही नहीं चलता....एक क्षण पहले तक हम उस वस्तु के बिना भी बिलकुल
संतुष्ट थे जिसके बिना अब अचानक मुसकुराना भी मुश्किल लगता है....
लोभ का कोई
अंत नहीं, कोई
सीमा नहीं....स्वयं भगवान के बाद कुछ यदि असीम और अनंत है तो वो हमारे लोभ, हमारा लालच ही
है....जितना भी अधिक हमे मिलता है उससे भी अधिक हमारी इच्छाएँ पाना चाहती
हैं....हमारे मन मे इच्छाओं का moulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-21083259196614686542014-08-24T12:42:00.000+05:302014-08-24T12:42:13.066+05:30विश्वमित्रा (भाग २)
कुछ महीनो बाद
अचानक ही विश्वमित्रा के लिए एक करोड़पति होटल मालिक का रिश्ता आया.....वह एक 40
साल का तलाक़शुदा व्यवसायी था जिसकी लगभग 35 करोड़ की संपत्ति थी...उसने किसी
विवाह मे विश्वमित्रा को चहकते, इठलाते हुए देखा था और तब से उसका दीवाना बन गया था.....
प्यार तो
फिलहाल विश्वमित्रा के नसीब मे था नहीं...उसने सोचा इस खाई को वो पैसे से ही ढाक
देगी.....
लेकिन हर ताले
के लिए चाभी तो एक नहीं moulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-38784637996142011482014-08-23T12:30:00.000+05:302014-08-23T12:30:52.791+05:30विश्वमित्रा (भाग-१)
“ट्रीन ट्रीन....वेक
अप...अप...अप...” अलार्म ने अपने पूरे जोश के साथ उसकी
तंद्रा तोड़ी...हड्बड़ा कर उठी वह....हतप्रद दृष्टि चारों ओर डाली....शायद वह कल
देर रात तक स्टडी मे ही बैठी थी.....शायद थक कर यहीं सो गयी थी...शायद.... पर उसे
यह सबकुछ ठीक से याद क्यूँ नहीं आ रहा है......पास पड़े खाली
ग्लास को उठा कर सूंघा.....पानी???? बस सादा पानी????
मतलब नशा भी नहीं था उसे कोई.........फिर यह
moulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-13336563126426853762014-08-09T23:45:00.000+05:302014-08-09T23:45:25.294+05:30क़ब्रें बात किया करती हैं
क़ब्रें बात किया करती हैं,
दबी, सनी, गीली मिट्टी के
सूखने से पहले ,
और दुआ पढ़कर लौट जाने वाले
आखिरी शख़्स के जाने के बाद
कभी सहमी, कभी दबी आवाज़ में ,
कभी चीख़ते हुए यूँ ही कई दफ़ा ,
कब्रें बात किया करती हैं
moulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-30015527093459702382014-07-10T22:43:00.000+05:302014-07-11T16:51:26.492+05:30एक कहानी...
एक कहानी,
फटी पुरानी
न कोई राजा,
न कोई रानी,
एक आईना,
वो चार आँखें,
एक साँस,
बस मैं और तुम....
एक से मौसम,
एक से कपड़े,
एक सी कविता,
एक से मिसरे,
एक सी बातें,
उन बातों के,
पाक मे घुलमिल,
एक आस,
बस मैं और तुम….
एक दिवाली,
और एक होली,
दूर गाँव,
एक पास सड़क,
एक पुलिया
फिर एक पगडंडी,
वहीं किनारे,
एक नहर पर,
दो मुस्काने,
एक विश्वास,
बस मैं और तुम....
तिरछी भौं,
moulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-84905993014612921212014-06-30T08:41:00.000+05:302014-06-30T08:41:04.918+05:30एक और कविता फिर तुमपर....
एक और कविता फिर तुमपर....
तुम्हारी दोहरी भौंहों पर,
तुम्हारी गहरी आँखों पर,
तुम्हारी शरारती मगर सहमी
मुस्कान पर,
तुम्हारे फ़र्जी इतराने
पर....
मगर इन सब से बढ़कर कहीं,
उन टेढ़े मेढ़े से हजारों लाखों लम्हों पर,
जो हमने साथ गुज़ारे थे....
कुछ तो उतर गए मेरे भीतर, परत दर परत,
और कुछ इन पन्नों की छन्नी
से छनकर,
बिखर गए कविता बनकर....
और हर बार की तरह ही
सारी दुनिया पढ़ेगी ये
कविता मेरी,moulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-57857584389146803362014-06-15T09:33:00.001+05:302014-06-15T09:40:14.663+05:30जिल्द
किताबों
की जिल्द बदल दो
कि
बड़ी ज़ोरों का तूफान आने वाला है...
जिल्द
कमज़ोर रही तो उड़ जाएंगे ये पन्ने
फिर
उनके सब शब्दों कि नुमाइश होगी
उन
शब्दों के अर्थों को हर ओर उछला जाएगा
एक
दूसरे पर नाहक ही चपोड़ा जाएगा
बेवजह
दूसरों के मुंह मे ठूसा जाएगा
भावनाओं
की सब और अर्थियाँ उठेंगी
और
रचनाकार इस पागलपन के बीचों बीच
नंगा
किया जाएगा...
और
अगर नंगा हो गया रचनाकार तो
गिर
जाएगा नकाब हर उस moulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-87602954512927069862014-03-22T08:04:00.004+05:302020-10-26T22:24:23.914+05:30आज लखनऊ बहुत याद आया....
यूं
ही बातों बातों मे छिड़ा जब स्वाद और ज़ायकों का ज़िक्र,
और
एक के बाद एक लिए जाने लगे पकवानों के नाम
समेटे
हर महक, हर लज़ीज़ी, हर कलेवर,
आज मुझे लखनऊ बहुत याद आया....
किसी
पुरानी किताब मे दबे गुलाब जैसा नही
जो
किसी और की अमानत हो,
बंद
कर दो किताब और रखा रहे वो फ़ूल उसमे,
सालों
साल जस का तस...
मुझे
याद आया लखनऊ ऊनी कपड़ों के बक्से मे
बरसों
से बंद कपड़ों से आती नेफ्थलिन गोलियों moulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-37150508211616473432014-03-01T18:03:00.000+05:302014-03-01T18:07:06.302+05:30बेमानी
किसी पन्ने पर कभी कुछ लिखो अगर,
और गलती से हुई गलती पर
उसे जानबूझ कर काट दो
मोटी मोटी लकीरों से,
कई कई बार,
तो हर बार पन्ना पलट लेना,
अगली लाईन लिखने के लिए,
और उस कटी लकीरों वाले पन्ने को,
वहीं छोड़ देना क्योंकि,
गलतियाँ, गलतियों के सामने सुधारने मे,
परेशानी होती है,
पुराने पन्नो पर नयी शुरुआत करना अक्सर,
बेमानी होती है......
moulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-44825463558368423192014-02-27T13:38:00.004+05:302014-02-27T13:38:40.459+05:30अचरज
कभी सोचा है तुमने कोई रंग,
किस तरह इतना पक्का हो जाता है,
मन से उतरा भी तो,
रूह पे चढ़ जाता है,
गांठ पड़ी और धागा कैसे,
इतना मजबूत हो जाता है.....
moulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-45442919625798326612014-02-22T17:49:00.001+05:302014-06-22T01:39:34.337+05:30What a silly billy word....
Once again you loved someone…with all
your heart and soul...you would have done anything just to make them
smile...ANYTHING... you were crazier than ever but had never felt this sane all
your life... you were not supposed to but you made all the plans of your future
with them…In your mind…They were pretty plans...Loaded with pure bliss, coated
with romance and stuffed with laughter…you moulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-61153421530853649002013-11-15T23:35:00.005+05:302013-11-15T23:35:34.598+05:30डर गए ना तुम इस बार....
डर गए ना तुम इस बार,
जब मेरे तुम्हारी तरफ पलटते ही,
मेरे चेहरे की जगह पे दिखा तुम्हें सिर्फ,
शून्य.....
और फिर गणित के किसी समीकरण की तरह,
बढ़ने लगा वो शून्य, अनंत की ओर,
सहम गए न तुम इस बार,
जब मैं तुम्हें एक अलग ही शक्स लगी,
और मैंने कोई कोशिश भी नहीं की,
तुमसे जान पहचान बढ़ाने की,
और सुलझ गयी मैं अपने मन की
सारी गांठें खोल कर,
पर इस सीधी सादी, तुम्हारी अपनी,
जानी पहचानी डगर परmoulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-26729698476867743722013-11-14T21:46:00.002+05:302013-11-14T21:46:45.466+05:30अनजाने मे
जब भी कहीं, कुछ सोचते हुए,
बैठे, बतियाते किसी कागज़ पर मैं
यूं ही आड़े तिरछे कुछ चित्र उकेर देती हूँ,
किसी बात की गहराई में खोयी,
उन चित्रों को बड़ी आत्मीयता से कई कई बार
अनगिनत लाइनों से मोटा कर,
उनमें काले या नीले पेन से कोई,
नया रंग भर देती हूँ,
तो अपनी सोच से वापस आकर,
अनजाने मे ही सही लेकिन हर बार,
बड़ी गहराई से ये जांच लेती हूँ,
कि कहीं उस चित्र का एक भी हिस्सा,
moulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-82041311051749336582013-10-01T07:59:00.001+05:302013-10-01T07:59:33.452+05:30 आकर्षण
तुम आ गए ??
जानती थी मैं,
आना ही था
तुम्हें तो, आज नहीं तो कल,
तुम आज ही आ
गए.....
मगर इस बार
रूप बदल कर आये हो,
चेहरा,
हाव-भाव, तौर-तरीके सब बदल गए हैं
इस बार
तुम्हारे.....
सोचा था जान
नहीं पाऊँगी मैं???
मैं तो दरवाजे
के बाहर से ही पहचान गयी थी,
तुम्हारी आहट,
और कसम खा ली
थी कि चाहे कोई भी खोले दरवाज़ा,
मैं नहीं
जाऊँगी तुम्हारे सामने,
नहीं परोसूंगी
तुम्हें पानी, चाय, नाश्ता,
मगरmoulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-25635912592397655612013-09-21T09:46:00.002+05:302013-09-21T11:58:43.354+05:30भ्रम
आओ मेरे सब भ्रम तोड़ दो
moulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-34819305834082718202013-09-14T09:17:00.008+05:302013-09-14T18:47:24.281+05:30एक वादा
तो फिर आओ एक
वादा करते हैं,
कुछ कसमें खा
लेते हैं
और उम्मीद
करते हैं अभी इसी क्षण से,
कि जनम जनम तक
ये वादे ये कसमें,
हमे एक दूसरे
से बांधे रखेंगे, कभी न जुदा होने के लिए.....
और जब ये बंधन
ढीला पड़ने लगेगा
तुम्हारी
मजबूरियों, मेरी लपरवाहियों,
हमारी तन्हाइयों
के कारण,
हम झट से लपेट
लेंगे एक दूजे को,
अपनी बाहों की
नर्म रज़ाई मे,
कस कर,
तब तक के लिए
जब तक कि
मौसम की हरारत
उतर न आए
moulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-77381702908116215762013-09-11T08:22:00.001+05:302013-09-11T08:35:21.240+05:30मुखौटे
मैं झूठ नहीं,
फरेब नहीं फिर भी,
मेरे कई चेहरे
हैं,
कुछ लिपे पुते
से, कुछ विभत्सmoulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5275119685729453822.post-82883902247300900922013-09-04T22:59:00.011+05:302013-09-04T23:01:44.508+05:30 तुम चले गए
तुम चले गए, अच्छा हुआ,
क्योंकि अगर रुक गए होते मेरे साथ
तो आज बहुत निराश होते,
पहले न गए होते तो आज,
यकीनन चले जाते,
आज बड़ी तूफानी बारिश हुई है,
एसिड बरसा रहे हैं आज बादल, मुझपर
हर ओर बड़ी मनहूसी और मायूसी है
मगर मैं हंस रही हूँ, ज़ोर ज़ोर से,
खिलखिलाकर....
क्योंकि आज स्याहियों के रंग बदल रहे हैं,
सारे बंधन सब सीमाएं छूट रही हैं,
इस जहरीली बारिश को मैं,
अपने ज़हर से ललकार रही moulshree kulkarnihttp://www.blogger.com/profile/15104225049744647308noreply@blogger.com4