तुम चले गए, अच्छा हुआ,
क्योंकि अगर रुक गए होते मेरे साथ
तो आज बहुत निराश होते,
पहले न गए होते तो आज,
यकीनन चले जाते,
आज बड़ी तूफानी बारिश हुई है,
एसिड बरसा रहे हैं आज बादल, मुझपर
हर ओर बड़ी मनहूसी और मायूसी है
मगर मैं हंस रही हूँ, ज़ोर ज़ोर से,
खिलखिलाकर....
क्योंकि आज स्याहियों के रंग बदल रहे हैं,
सारे बंधन सब सीमाएं छूट रही हैं,
इस जहरीली बारिश को मैं,
अपने ज़हर से ललकार रही हूँ,
एक एक बूंद एसिड की मैं,
ज़मीन पर गिरने से पहले,
अपने हलक में उतार रही हूँ...
मेरी सारी ऊपरी परतें गल गल कर
उतर रही हैं मेरे जिस्म से,
और फैल रही हैं मेरे आस पास....
ये जो मिट्टी अब तक भूरी थी,
वो अब लाल हो गयी है,
ये घास के मैदान पूरे के पूरे,
सफ़ेद पड़ गए हैं,
देखो, कि ये पानी कि बूंदें कभी
इतनी पीली, मटमैली तो नहीं थीं,
आज मेरी सारी झूठी, नकली,
रंगबिरंगी, खूबसूरत शक्लें,
मुझे मुँह चिढ़ा रही हैं, मुझे छोड़ कर जा रही हैं
और मैं खिलखिला रही हूँ, उन्हे वापस मुँह चिढ़ा रही हूँ....
मेरा सब बोझ हल्का हो रहा है,
और मैं खड़ी हूँ,
नग्न, विभत्स, एक राक्षसी....
आज तुम मुझे देखते तो घबरा जाते,
घृणा करते मेरे इस असली रूप से,
शायद पहचान भी न पाते मुझे...
इसलिए,
मेरे झूठे रंग रूप और गंध के साथ,
मेरी किसी एक परत की कुछ बूंदें ले कर,
मेरा असली चेहरा देखने से पहले,
मेरा सच देखकर समझ पाने से पहले,
अच्छा ही हुआ.....जो तुम चले गए......
photo from google
4 comments:
Gahra dard aur akrosh samete ... Jeevan ki sachaiyon se joojhti rachna ...
digambar ji... dhanyawaad...
lalit ji....meri rachna ko is layak samajhne hetu dhanyawaad....
neeraj ji dhanyawaad...apki charcha me mere post shamil karne hetu...aabhar.
jo khoobsoorti sachhhai me hai kahin nai...!
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