किताबों
की जिल्द बदल दो
कि
बड़ी ज़ोरों का तूफान आने वाला है...
जिल्द
कमज़ोर रही तो उड़ जाएंगे ये पन्ने
फिर
उनके सब शब्दों कि नुमाइश होगी
उन
शब्दों के अर्थों को हर ओर उछला जाएगा
एक
दूसरे पर नाहक ही चपोड़ा जाएगा
बेवजह
दूसरों के मुंह मे ठूसा जाएगा
भावनाओं
की सब और अर्थियाँ उठेंगी
और
रचनाकार इस पागलपन के बीचों बीच
नंगा
किया जाएगा...
और
अगर नंगा हो गया रचनाकार तो
गिर
जाएगा नकाब हर उस फरेब का जिसे सच के ठेकेदारों ने
सदियों
से सहेजा है
पर
इतना वीभत्स होगा उस सच का बेनकाब चेहरा
कि
चीख पड़ेगी सारी सभ्यताएँ एक साथ
और
ये भयंकर चित्कार बनेगी डंका एक नए महसंग्राम का
तो
इससे बेहतर है कि ढका ही रहे सच का चेहरा
और
कभी न नंगा हो कोई अनकहा इतिहास.....
ताकि
कभी कुछ और न बदले किसी
भूत, भविष्य और
वर्तमान मे,
किताबों
कि जिल्द अब बदल दो......
5 comments:
सुंदर अभिव्यक्ति !
फालौवर्स गैजेट लगायें ताकि आपकी ब्लाग पर छपी पोस्ट की जानकारी मिलती रहे ।
gadget add kar diya hai.... sujhao hetu dhanyawaad...
कभी न नंगा हो कोई अनकहा इतिहास...बहुत खूब ...
Bahut bahut dhanyawad
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