Tuesday, July 30, 2013

थोड़ा कहूँ बहुत समझना....


थोड़ा कहूँ बहुत समझना....
मेरी हर बात पे हँस लेना,
मेरी लिखावट पे चिढ़ जाना,
मगर कसम हैं तुमको....
मेरी चिट्ठी पढ़ने के बाद
उसके चारों कोनो को मिलाकर,      
अच्छे से तह लगाना
और अपने टेढ़े मेढ़े हो चुके
चार साल पुराने पर्स मे
जिसपे मैंने लाल रंग के स्केच पेन से
दो फूल बनाए थे, संभाल कर रख लेना,
मुझे एक बार याद कर लेना,
थोड़ा कहूँ बहुत समझना....

तुम झल्लाओगे,
मेरे अनपढ़ किस्सों पर,
मेरी शब्दों की नासमझी पर,
मेरी भाषा की ढीली पकड़ पर
मेरी बेवकूफी पर, मेरे गंवार होने पर,
झल्ला लेना...

लेकिन कसम है तुमको....
हर सुबह उठकर मेरी चिट्ठी को,
अपने टेढ़े मेढ़े, चार साल पुराने,
दो लाल फूलों वाले पर्स से निकाल कर
बस देख लेना,
चाहे उसकी तहों को खोल कर,
चारों कोनो को अलग कर,
मत पढ़ना.....बस देख लेना....
मुझे याद कर लेना....

थोड़ा कहूँ बहुत समझना....

                                                                             ---मौलश्री कुलकर्णी


1 comment:

aamir mallick said...

this one is the best among all.. keep writing... god bless...