आओ मेरे सब भ्रम तोड़ दो
क्योंकि इन ज़ंजीरों को मैंने ही
अब तक जकड़े रखा है,
और मैं फड़फड़ाती हूँ अपने पर,
इन भ्रम की ज़ंजीरों को और अधिक कसने के लिए,
जैसे चिड़ियाघर मे हुक्कू बंदर पिंजरे मे रहकर भी,
उछलता है, मटकता है, करतब भी दिखाता है,
ताकि उसका मालिक रहने दे उसे,
उसी पिंजरे मे,
मिलता रहे उसे, एक ठिकाना, पेट भर खाना
और बना रहे वो हमेशा सबके,
आकर्षण का केंद्र.....
वो तो बंदर है, कम दिमाग वाला,
फिर भी जानता है अहमियत बंधे रहने की ज़ंजीरों मे,
टिके रहने की उसी पिंजरे मे सालों साल.....
मैंने अपने भ्रम भी खुद ही बनाए हैं,
क्योंकि मैं तो इंसान हूँ, उससे दस गुना विकसित,
सौ गुना समझदार, हज़ार गुना उलझा हुआ.....
क्योंकि इतना आसान नहीं होता ना,
अपने मन को खुला छोड़ पाना,
मन तो हमेशा बंधना चाहता है,
किसी नाम से, किसी घटना से, किसी याद से,
और जोड़ता ही जाता है एक के ऊपर एक,
हर बार नया भ्रम,
हर नाम, हर घटना, हर याद से.....
जैसे इस क्षण मुझे भ्रम है कि तुम मेरे हो,
और तुम आओगे, मेरे सारे पुराने,
घिसे-पिटे, दक़ियानूसी भ्रम, अपने सामीप्य से तोड़ने,
और मिलकर बनाओगे मेरे साथ,
हमारे साथ-साथ होने का भ्रम....
पर सुनो, तुम ऐसा करो,
तुम मत आओ इस बार,
मत उलझो मेरे ताने-बानों में, मत फँसो मेरी ज़ंजीरों में,
मत बनो कठपुतली मेरे सपनों की,
और तोड़ दो मेरे हर भ्रम की बुनियाद को,
हमेशा हमेशा के लिए.....
5 comments:
lady...! can i tell you.. ki aap ki ek ek pankti jaise aapke dil se nikalti h waise hi mere dil pe chubh jati h??? thnku so much for making my day..!
बहुत सुंदर
dhanyawaad rakesh ji....
Bahut badhiya
Bahut badhiya...... lekhan saili gajab h apki... aabhar
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