Sunday, August 24, 2014

विश्वमित्रा (भाग २)


कुछ महीनो बाद अचानक ही विश्वमित्रा के लिए एक करोड़पति होटल मालिक का रिश्ता आया.....वह एक 40 साल का तलाक़शुदा व्यवसायी था जिसकी लगभग 35 करोड़ की संपत्ति थी...उसने किसी विवाह मे विश्वमित्रा को चहकते, इठलाते हुए देखा था और तब से उसका दीवाना बन गया था.....
प्यार तो फिलहाल विश्वमित्रा के नसीब मे था नहीं...उसने सोचा इस खाई को वो पैसे से ही ढाक देगी.....
लेकिन हर ताले के लिए चाभी तो एक नहीं होती.....प्यार के ताले मे पैसे की चाभी कभी समा नहीं पायी.....पैसा वह रीतापन कभी पाट नहीं पाया जो प्यार की तलाश मे उसके अस्तित्व मे फैल गया था....
उस बात को 4 साल बीत चुके हैं...एक विवाहिता होने के बावजूद भी...इतने समझदार और इतना प्यार करने वाले पति के होने के बावजूद भी...विश्वमित्रा का आज भी बहुत से लोगों से अफेयर है....अविनाश भी उसे उन लोगों मे से एक लगता था....वो भी इससी नाते इससे मिल लेता था की वो पुराने दोस्त हैं....लेकिन विश्वमित्रा के लिए तो अविनाश अब एक ट्रॉफी था जिसे उसे हर हाल मे जीतना था....
चार पाँच महीने पहले तक तो सब ठीक था....
विश्वमित्रा, अविनाश और श्यामली बहुत अच्छे दोस्त थे....अविनाश श्यामली से एकतरफा प्यार करता था और विश्वमित्रा उन दोनों को दूर रखने का प्रयास करती थी....फिर भी वो अपने जीवन मे खुश थी....और लोगों के साथ.....हर किसी के साथ....
स्थिति विकट तब हुई जब अभी एक सप्ताह पहले अविनाश ने श्यामली को शादी के लिए प्रपोज़ किया.....और श्यामली ने भी खुशी खुशी स्वीकार कर लिया....
सब से पहले ये खुशखबरी विश्वमित्रा को ही मिली थी... उस पर तो मानो वज्रपात ही हो गया था.....
उसकी सीधी साड़ी, साधारण चाल ढाल वाली और प्यार के नाम पर मुंह बनाने वाली उससे 5 मिनट बड़ी बहन आज अपनी खुशी से एक ऐसे आदमी से शादी करने जा रही थी जो उससे इतना प्यार करता था....
और वो, विश्वमित्रा, इतनी खूबसूरत गुणवान, प्रसिद्ध और प्यार की इच्छा रखने वाली अपने पति और अंगिनित पुरुषों के होते हुए भी संतुष्ट नही है....
उसे अविनाश पर बहुत गुस्सा आ रहा था... वो क्यों उसका रूप देख नही पाता.... क्यों वो श्यामली के थके, मुरझाए से चेहरे पर कविताएं लिखता है....क्यों वो श्यामली से इतना प्यार करता है...क्यों कोई उससे इतना प्यार नही करता.....
कुछ विचार कर उठी वो...और तेज़ रफ्तार मे गाड़ी चलाते हुए श्यामली के घर पहुंची....गाड़ी को पार्क कर जब आईने मे अपना चेहरा देखा तो लगा के अभी गुस्से से यह फट जाएगा.... ईर्षा, नफरत, दुख, अपमान, तिरस्कार...ना जाने क्या क्या भाव उसे मिश्रित किन्तु साफ दिखाई पड़ रहे थे....
दनदनाती हुई वो श्यामली कमरे मे घुसी थी....उसे देखते ही श्यामली खुशी से झूम उठी थी...उसका रोष जाने बगैर उसके गले लग गयी थी....विश्वमित्रा को अपने अंदर एक अजीब सी आग महसूस हुई जो श्यामली के बदन से निकाल कर उसके हृदय को जला रही थी....
उसने एक झटके से अपनी बहन को पीछे धकेला....श्यामली चौंक पड़ी.....
तुम ठीक तो हो न विशू???” बहुत आत्मीयता से बोली श्यामली....
ठीक हूँ??? ठीक हूँ??? ठीक कैसे हो सकती हूँ मैं.... मेरा मज़ाक उड़ा कर...मेरी इन्सल्ट कर के पूछ रही हो की मैं ठीक हूँ???” चिंगारी की तरह भड़क उठी वो...
ऐसा क्या हुआ है??? और मैंने तुम्हारी कौन सी इन्सल्ट कर दी???
ओह प्लीज...अब ये भोलेपन का नाटक तो तुम मत करो... तुम जानती थी की मैं अविनाश से प्यार करती हूँ.....
क्या???? लेकिन हम तीनों तो बेस्ट फ़्रेंड्स थे.....और विशू...तुम तो शादीशुदा....
तो क्या शादीशुदा होने का मतलब है की मैं किसी से प्यार नहीं कर सकती??? मुझे अविनाश चाहिए....किसी भी कीमत पर....” हठी बच्चे जैसी तड़प उठी थी वो....
बचपन से यही तो करती आयी हो न तुम.....जो चाहिए वो किसी भी कीमत पर हासिल करनी ही है न तुम्हें???
अगर बचपन से अब तक इतनी महान बनकर मेरे लिए बलिदान करती आई हो तो एक उपकार और कर दो न....मुझे अविनाश दे दो....तुम उससे दूर चली जाओ....स्वयं की अपेकषा के ही विरुद्ध कुछ गिड्गिड़ाई विश्वमित्रा....
श्यामली सन्न खड़ी ही रह गयी.... लेकिन विशू... हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं....अगर मान लो अविनाश तुमसे शादी कर भी लेता है तो क्या तुम खुश रह पाओगी ये जानते हुए कि वो मुझसे प्यार करता है....
अविनाश के बिना भी तो मैं मर जाऊँगी...
लेकिन जीजाजी????.....
उनसे मैं तलाक ले लूँगी....
अच्छा....और......उसके स्वर मे बहकर अचानक वापस आई श्यामली. पागल हो ज्ञी हो तुम विशू....मज़ाक लगता है न तुम्हें ये सब....प्यार, शादी, तलाक....सब तो खिलवाड़ है न.....जो चाहा उसे छीन लिया फिर मन ऊब गया तो छोड़ दिया....
मर्म पर चोट होते ही फुफकार उठी वह नागिन.....
फिर तो ठीक है.....मैं तो बहन होने के नाते तुमको समझाने आई थी....अब ये खेल खतरनाक हो जाएगा.....तुम सारी कोशिशें कर लो अपने अविनाश को अपना बनाए रखने की....
पलट कर तेज़ कदमो से लौटी विश्वमित्रा राजपूत.....
श्यामली ने दौड़ कर उसका हाथ थम उसे रोकना चाहा....श्यामली के हाथों के स्पर्श से उसे ऐसा लगा मानो वो अभी पिघल जाएगी....इतना मर्म था उस छुअन मे की उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया....यह कैसा स्पर्श था की उसे लगा वह अभी बेहोश हो जाएगी.... उसका सारा जीवन उसकी आँखों के सामने से कई बार घूम गया.... इतनी आत्मीयता....इतना प्यार....इतनी करुणा...इतना रुदन..... जब यह स्पर्श उसके लक्ष्य के लिए असहनीय हो गया तो अपनी बहन का हाथ झटक कर अपनी गाड़ी की और भागी वो...
श्यामली अब भी स्तब्ध खड़ी अपनी कश्मकश से जूझ रही थी.... उसने चाहा कि अभी अविनाश को फोन कर के उसे सब कुछ बता दे और अपना मन हल्का कर ले.....लेकिन अविनाश तो किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले मे मुंबई गया था....इस वक़्त उसे फोन करना ठीक नहीं था...
हमारी दुविधाएँ भी हमारे साथ अजीब खेल खेलती हैं....जब कोई हमारा बिलकुल अपना हमे कोई गहरी चोट देता है ना, तो हमारे विचार बहुत जल्दी जल्दी अपनी दिशा बदलते हैं....पहले कुछ क्षण तो मन मे आता है की सामने जो हमारा अपना है ना उसे भी कोई गहरा घाव दें जिससे हमारा दर्द कुछ कम हो सके....फिर हमारी मानवता जागने लगती है और क्षमा भाव जगते है....फिर से सोच करवटें बदल कर अपने हक़ की मांगें करने लगती है....और ये सब विचार साथ मिलकर एक सुर मे हमारी दुविधाओं को बढ़ा देते हैं....
हजारों विचार चल रहे थे इस समय श्यामली के मन मे.....जीवन मे पहली बार किसी से इतना प्यार किया था उसने.... मम्मी पापा को तो दोनों बहने पहले ही खो चुकी थीं....अविनाश के आने से उसे अपना जीवन और परिवार पूरा लाग्ने लगा था....
और विशू...उसे तो वो सबसे ज़्यादा प्यार करती थी.... एक वही तो दोस्त थी उसकी इस पूरी दुनिया मे.....उसके प्यार के किस्से सुन सुन कर ही तो श्यामली भी मन ही मन अपने लिए कुछ सपने बुनती थी.... आज उसी विशू ने उसके सपनों के छोटे से घरोंदे को बसने से पहले ही उजाड़ दिया....
शायद उसे खुद ही अविनाश को विशू से शादी करने को कहना चाहिए.....उन दोनों से तो वो सबसे ज़्यादा प्यार करती है....
लेकिन वो ही क्यूँ हमेशा त्याग करे.... बचपन से लेकर आज तक उसे जो पसंद आया विशू ने पहले ले लिया....छोटी सी पेंसिल से ले कर उसकी प्यारी स्कूती तक...और फिर ये तो उसके पूरे भविष्य का सवाल था......ऐसा थोड़ी ना होता है की आज तक जो उससे इतना प्यार करता है कल उसके कहने पर उसकी बहन से शादी कर ले...वो भी क्यों....क्योंकि उसकी बहन की ऐसी ज़िद है....
लेकिन इतना सब प कर भी तो विशू अकेली ही है....क्या अपनी बहन के लिए वो इतना भी नहीं कर सकती.....
और अविनाश....अविनाश भी इस वक़्त इतनी दूर है....वो क्या करे...कहाँ जाये...किससे सलाह मांगे.....

इतनी तेज़ स्पीड मे कभी कार नही चलायी थी आज से पहले विश्वमित्रा ने....ना जाने वो किससे इतना दूर भागना चाह रही थी...जाने कहाँ जाने की उसे इतनी जल्दी थी....उस एक क्षण मे ऐसा क्या हुआ था उसके भीतर की उसे ना तो ट्रेफिक का कोई होश था ना ही इस बात की कोई सुध कि अपने घर से पाँच किलोमीटर आगे निकल आई थी वो..... बस चली जा रही थी...बेसुध....

 (जारी.....)

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