Sunday, August 24, 2014

विश्वमित्रा(भाग अंतिम )

हमारी इच्छाएँ हमारे लोभ कब बन जाती हैं हमे पता ही नहीं चलता....एक क्षण पहले तक हम उस वस्तु के बिना भी बिलकुल संतुष्ट थे जिसके बिना अब अचानक मुसकुराना भी मुश्किल लगता है....
लोभ का कोई अंत नहीं, कोई सीमा नहीं....स्वयं भगवान के बाद कुछ यदि असीम और अनंत है तो वो हमारे लोभ, हमारा लालच ही है....जितना भी अधिक हमे मिलता है उससे भी अधिक हमारी इच्छाएँ पाना चाहती हैं....हमारे मन मे इच्छाओं का ऐसा ब्लैक होल होता है, जो चाहे कितना भी भर जाए कभी पूरा नही होता.....कुछ ना कुछ अधूरा छूट ही जाता है....

किसी अंजान रोड पर एक सुनसान जगह कार खड़ी कर बहुत रोयी आज विश्वमित्रा...... आज वो खुद को बिलकुल अकेला और असहाय महसूस कर रही थी....ना जाने क्यों....उसे तो खुश होना चाहिए था ना....अब वो डंके कि चोट पर अविनाश से अपने प्यार का ऐलान कर सकती थी....उसे पाने के लिए कोशिशें कर सकती थी....अपनी बहन से बदला ले सकती थी...लेकिन ना जाने क्यूँ आज उसका ऐसा कुछ भी करने का मन ही नहीं किया....

       बहुत शाम तक वो उसी जगह बैठी खुद ही खुद से बातें करती रही....हँसती रही रोती रही....
देर शाम जब वो अपने घर लौटी उसके पति परेशान से बाहर ही टहल रहे थे.....उसे देखते ही उन्होने बाहों मे भर लिया....आज पहली बार उसने भी विरोध नहीं किया.... शायद आज उसे भी उनकी ज़रूरत थी...
विशू..... तुम्हारे लिए फोन है.....
ओफ्फो.....अभी तो वो बाथरूम मे घुसी ही थी कि उसके पति ने आवाज़ लगाई.....
मैसेज ले लो, मैं बाद मे कॉल बैक कर लूँगी
अर्जेंट है....शायद श्यामली के घर से है...देखो तो....
उसके पैर वहीं ठिठक गए...न जाने क्यों इतना डर रही थी वो....
झट से टॉवल लपेट के बाहर आई, फोन जैसे ही कान मे लगाया....
हैलो...मैडम.....मैं श्यामली जी का नौकर विमल बोल रहा हूँ....उन्होने फेनाइल की पूरी बॉटल पी ली है......
“....................” कुछ भी बोल नहीं पायी वो.....
मैडम....मैडम.....मैंने ड्राईवर को बुला लिया है...अविनाश सर भी नहीं हैं यहाँ.....मैं उनको अस्पताल ले जा रहा हूँ....आप...हो सके तो आ जाइए.....जल्दी....हैलो...मैडम...मैडम....आप सुन रही हैं न.....
“....हाँ.....
आप आ रही हैं न मैडम????
“.................”
हैलो...हैलो.....मैडम....
उसके हाथ से फोन कब गिर गया उसे पता ही नहीं चला......
ऐसा कैसे कर सकती है श्यामली....इतनी कमज़ोर कैसे निकली वो.....खेल को कम से कम खेलना तो चाहिए था न.....पहले कैसे हार मान लई उसने.... वो भी इतनी आसानी से.....उसे तो हमेशा ही सबकी सहानुभूति चाहिए.... मुझे सबकी नज़रों मे बुरा बना कर खुद तो बहुत महान बन गयी वो.....
लेकिन क्या उसे अस्पताल जाना चाहिए???? क्या इस सब का कारण वो थी???? क्या श्यामली ने उसकी वजह से खुद को मारने की कोशिश की??? ये सब सोचते सोचते कल रात कब उसकी आँख लग गयी थी उसे पता ही नहीं चला था....
अभी कुछ देर पहले जब उसने अविनाश से बातें की तो उसका लहजा सुन कर वो समझ गयी कि उसे श्यामली की हालत के बारे मे कुछ भी पता नहीं था....और न जाने क्यूँ उसने बताया भी नहीं.....
फ्रेश होकर सहमते कदमो से वो अस्पताल पहुँची...ड्राईवर और नौकर ICU के बाहर ही बैठे थे.....उनकी अवस्था से साफ था कि दोनों रात भर सोये नहीं थे.....
विश्वमित्रा ने अस्पताल पहुँचते ही दोनों को चाय नाश्ते के पैसे दे कर घर भेज दिया....
एक घंटे तक वो ICU के दरवाजे पर ही बैठी रही...शांत, स्तब्ध, दिशाहीन....
न जाने क्यों खुद ही अविनाश को फोन मिलाया....
हैलो....अविनाश....मैं विश्वमित्रा....एकदम सपाट शब्दों मे बोली वो....
अभी मैं थोड़ा बिज़ी हूँ......
देखो अविनाश मुझे पता है कि तुम मुझे टाल रहे हो...लेकिन मैंने तुम्हें अपने बारे मे बात करने के लिए नही...श्यामली के बारे मे कुछ बताने के लिए फोन किया है....उसने फेनाईल कि पूरी बॉटल पी ली थी....क्योंकि मैं उससे कहा था कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ और किसी भी कीमत पर हासिल कर के रहूँगी.....लेकिन अब घबराने कि कोई ज़रूरत नहीं है...मैं आ गयी हूँ उसके पास.....उसका ध्यान रखने के लिए....एक ही सांस मे बोल फूट फूट कर रोयी वो.....
कुछ देर मे डॉक्टर ने उसे श्यामली से मिलने के लिए बुलाया.....
अपनी बहन को इस हाल मे देख वो फिर से रोयी......एक अबोध बच्ची जैसी.... नर्स उसे बाहर भेजने लगी तो श्यामली ने उसे रोक लिया.....
इतना रोएगी विशू तो लोग समझेंगे मैं मर गयी....” 
सिर उठा कर उसने श्यामली को देखा...दोनों कि आँखों मे आंसु भरे थे.....
मैंने तो सोचा था कि मैं तुम्हारे रास्ते से हट जाऊँगी...मर जाऊँगी तो अविनाश को तुम रख लेना....
अविनाश कोई सामान तो नहीं है ना श्यामली.....वो एक इंसान है जिसके दिल मैं तुम हो....और सच कहूँ...मुझे कभी भी उससे प्यार नहीं था....मैं तो बस उसे इसलिए पाना चाहती थी क्योंकि वो मुझे मिल नहीं सकता था....कहते ही लिपट गयी वो अपनी बहन से और कब विश्वमित्रा राजपूत से छोटी सी विशू बन गयी उसे खुद भी पता नहीं चला.....
आज पहली बार उसे लगा कि उसकी मन के रीते उस कुएं पर कुछ बूंदें प्यार कि बरसी हैं....बहुत कुछ खाली हो कर भी भरा भरा सा लगने लगा....
शाम तक अविनाश भी पहुँच गया....अभी ICU मे मरीजों को देखने के वक़्त मे कुछ देरी थी....बाहर ही बैठे रहे विश्वमित्रा, अविनाश और उसके साथ आए कुछ दोस्त....निःशब्द.....
विश्वमित्रा ने नज़र उठा कर अविनाश को देखा....पागल सा....बदहवास...आँखों से अविरत बहते आँसू....क्या यही सच्चा प्यार है....क्या इसी एक क्षण के लिए लोग अपना पूरा जीवन समर्पित कर देते हैं.....श्यामली के भाग्य से ईर्षा हुई उसे....अब अविनाश ने उसकी तरफ देखा......एक फीकी सी हंसी फेंकी जिसके पीछे पीछे अनगिनत आंसुओं ने अपना रास्ता तलाश लिया..... डॉक्टर ने अब अविनाश को अंदर बुलाया....बिलकुल पागलों कि तरह भागा वो भीतर....अपने प्यार को अपनी बाहों मे भरने के लिए...कभी ना जुदा होने के लिए.....
विश्वमित्रा बाहर ही बैठी रही...घंटों तक....अपनी जगह से हिली भी नहीं.....
दो दिन बाद श्यामली को प्राइवेट वार्ड मे शिफ्ट कर दिया गया....दो दिनो तक विश्वमित्रा और अविनाश की कोई बात नहीं हुई.....दोनों श्यामली की सेवा करते रहे बस.....
पिछले चार दिनो से विश्वमित्रा भी अस्पताल मे ही रही...उसके पति उसके लिया सामान लाते ले जाते रहते....
पांचवे दिन अविनाश ने चुप्पी तोड़ी....
विशू.....आज बरसों बाद उसे इस नाम से पुकारा था उसने...
झट से पलटी वो....
देखो विशू मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है...हालांकि ये जो कुछ भी हुआ, नहीं होना चाहिए था....फिर भी तुम और श्यामली तो मेरे बेस्ट फ़्रेंड्स हो.....और अब तो हम रिश्तेदार भी बनने वाले हैं.....इन सब पुरानी बातों को भूल कर हम एक नयी शुरुआत कर सकते हैं......
विश्वमित्रा ने एक बार भी अविनाश की ओर नहीं देखा.....सिर झुका कर ही बोली....
तुम्हें ये जानकर आश्चर्य होगा अविनाश कि मैं तुमसे प्यार नहीं करती हूँ.....तुमसे क्या मैं तो किसी से भी प्यार नहीं कर सकी.....हमेशा प्यार पाने के लिए भागती रही लेकिन ये कभी समझ नहीं पायी कि प्यार आखिर है क्या.....उस दिन ICU के बाहर तुम्हें देख कर ये एहसास हुआ कि प्यार कि तड़प उसे पाने से कहीं बढ़कर है....आज सुबह जब तुमने श्यामली के माथे पर प्यार किया तो लगा शायद सच्चा प्यार सारे ब्रह्मांड को अपने आप मे समेट लेता है....मैं तुमसे तुम्हारा प्यार नहीं छीन सकती....और श्यामली....वो तो मेरे लिए सब कुछ है...मैं खुश रहूँ इसलिए जान देने चली थी...पागल....फिर आंसुओं का बांध टूट गया.....
दस मिनट बाद वो उठी और बाहर जाने लगी.....
विशू....अविनाश ने फिर पुकारा.... हम दोनों की नज़रों मे तुम्हारा कद आज बहुत बढ़ गया है....
बिना कुछ कहे अपने आंसुओं से विदा लेकर एक मुस्कान के साथ वो सड़क तक आई.....देखा अविनाश का एक दोस्त जो उसके साथ आया था, अपनी बाइक स्टार्ट कर रहा था....
झट से आँसू पोंछ, बालों को खोल कर जूड़े से आज़ाद किया...साड़ी का पल्लू कुछ नीचे गिराया....और उसके पास जा कर उसके हाथों को पकड़ कर उससे घर तक छोडने का एक शर्मिला सा आग्रह किया.....अब वो बाइक पर बिलकुल सट कर उसके साथ बैठी थी...और अपने हाथो को उसकी कमर मे डाल दिया......

कुछ देर पहले बढ़ा हुआ कद उसे शायद कुछ रास नहीं आया........

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