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मेरे मुखर से मौन होने की कहानी जो अब मेरी लेखनी बोलती है.….

Monday, September 2, 2013

my poems in kalptaru express

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Posted by moulshree kulkarni at 10:51 PM
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मन की सब जानी अनजानी गाँठों को जब धीरे धीरे खोला, ये अनकही ही एक महाकाव्य बन गयी ....
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