ankahee

मेरे मुखर से मौन होने की कहानी जो अब मेरी लेखनी बोलती है.….

Monday, September 2, 2013

my poems in kalptaru express

Details
Posted by moulshree kulkarni at 10:51 PM
Email ThisBlogThis!Share to XShare to FacebookShare to Pinterest

No comments:

Post a Comment

Newer Post Older Post Home
Subscribe to: Post Comments (Atom)

Followers

Popular Posts

  • तुम चले गए
    तुम चले गए, अच्छा हुआ, क्योंकि अगर रुक गए होते मेरे साथ तो आज बहुत निराश होते, पहले न गए होते तो आज, यकीनन चले जाते, आज बड़ी त...
  • तुम बहुत सुंदर हो....
    तुम बहुत सुंदर हो.... तुम्हारी आँखों मे अथाह मासूमियत भरी पड़ी है... तुम्हारे सुदर्शन इस मुख पर यह तीखी नाक तराशी गयी है.... तुम्ह...
  • अचरज
    कभी सोचा है तुमने कोई रंग , किस तरह इतना पक्का हो जाता है , मन से उतरा भी तो , रूह पे चढ़ जाता है , गांठ पड़ी और धागा कैसे , इत...
  • जिल्द
    किताबों की जिल्द बदल दो कि बड़ी ज़ोरों का तूफान आने वाला है... जिल्द कमज़ोर रही तो उड़ जाएंगे ये पन्ने फिर उनके सब शब्दों कि नुमाइश...
  • भ्रम
                                                              आओ मेरे सब भ्रम तोड़ दो                                                     ...
  • (no title)
    चार रास्ते, एक ही से, चारों सही, चारो अलग, किसी एक को जो चुना तो, कभी मालूम भी नहीं होगा कि बाकि तीनो रास्तों पर चलने से, ज़िन्दगी कहाँ...
  • एक कहानी...
      एक कहानी , फटी पुरानी न कोई राजा , न कोई रानी , एक आईना , वो चार आँखें , एक साँस , बस मैं और तुम.... एक से मौसम , ए...
  • अगरबत्ती
    अब तुम खुद बताओ कैसे जलाऊँ अगरबत्ती। घर से निकलते वक़्त मम्मी ने पचास हज़ार बार कहा था , हर रोज़ शाम को भगवान के सामने दो अगरबत्तियाँ जला दि...
  • मेरे कान्हा....
    मेरे कान्हा , तुम्हें किसने दिया था ये अधिकार , कि मुझे अपना बनाकर , अगिनित स्वप्न दिखा कर ,  अंधेरी एक रात मे चुपचाप , मुझसे बिन...
  • जून महीना
    किसी जून महीने मे , कई बरस पहले , खूब जम के बरसा था मानसून जिस साल , घर के बाहर जमा हो गया था कित्ता सारा पानी , बिलकुल गंगा ज...

Blog Archive

  • ►  2016 (1)
    • ►  February (1)
  • ►  2014 (17)
    • ►  December (2)
    • ►  November (3)
    • ►  August (5)
    • ►  July (1)
    • ►  June (2)
    • ►  March (2)
    • ►  February (2)
  • ▼  2013 (29)
    • ►  November (2)
    • ►  October (1)
    • ▼  September (5)
      • भ्रम
      • एक वादा
      • मुखौटे
      • तुम चले गए
      • my poems in kalptaru express
    • ►  August (17)
    • ►  July (4)

ankahee

My photo
moulshree kulkarni
मन की सब जानी अनजानी गाँठों को जब धीरे धीरे खोला, ये अनकही ही एक महाकाव्य बन गयी ....
View my complete profile
Simple theme. Theme images by luoman. Powered by Blogger.