आज कमला बहुत उदास है। विमला नहीं
आई। सुबह से ही कमला मुँह फुला कर बैठी है। खुले बाल, अधलगा, पुछा सा बुझा काजल,
शायद आज तकलीफ़ कुछ ज़्यादा ही है। पतिदेव की ठिठोली भी आज उसे नहीं सुहा रही है।
कहीं विमला चली गयी तो!!! कभी वापस लौट कर नहीं आई तो!!!! ठीक है अगर कल गुस्से मे
कुछ ज़्यादा बोल दिया था, लेकिन आज आ तो जाती। बातें सुलझ भी तो सकती हैं।
उधर विमला भी बेचैन सी फिर रही है।
क्या करे वो आज उसे कुछ सूझता ही नहीं। वो जानती है कि कमला उसके बिन अधूरी है।
इसी कमज़ोरी का वो हमेशा फायदा उठाती है। पर कमला के हाथ की चाय के बिन तो उसका दिन
भी खाली खाली सा जाता है। लेकिन फिर भी आज वो तय कर के बैठी है कि बिना मान मनुहार
वापस नहीं जाएगी।
कमला भी अब खीज उठी है। कब तक और
किस किसकी मनुहार करे वो और क्यों.....
कमला और विमला, बहने नहीं है,
माँ-बेटी नहीं, सहेलियाँ या रिश्तेदार भी नहीं, और सास-बहू तो बिलकुल नहीं। एक
मालकिन है और एक नौकरनी। लेकिन किसकी पदवी कौन सी है यह निश्चय करना अक्सर मुश्किल
हो जाता है।
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