चूल्हे पर तरकारी चढ़ी है,
एक
तरफ रोटी भी सिक रही है,
पर
इस आँगन से स्वाद रूठा है,
क्योंकि
हम सब ना जाने कहाँ,
नमक, मिर्च
और मसाले रख कर
भूल
गए हैं,
अगर
तुमको मिले कहीं तो ल देना ये सब,
इन
सन्नाटों की छौंक अब हमसे सहन नहीं होती.....
2 comments:
loved this composition Moulshree
Thanx a lot mam...
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