जब भी कहीं रखा जाता है
चाय का एक कप, कुल्हड़ या गिलास,
सीधे, सादे, गंवई तरीके से,
बिना तश्तरी, बिना फ़र्निचर
की सतह की चिंता के,
किसी खिड़की, किसी टेबल, किसी किताब पर....
तो रह जाता है एक गहरा निशान बाकी,
हर बार...
बिना आँख, नाक और चेहरे वाली,
चाय की मुस्कान का.....
----मौलश्री कुलकर्णी
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