Saturday, August 31, 2013

कभी प्यार नहीं हो सकता

ये जो तप तप कर मेरी देह पर चढ़ रहा है,
ये बुखार नहीं हो सकता,
मुझे यकीन है मुझे तुमसे,
कभी प्यार नहीं हो सकता....
जब भी दिख जाओ कहीं तुम,
एक बंद पड़े कमरे मे सीलन लग जाती है,
अपने ही जिस्म से मुझे बदबू आती है
तुम्हें महसूस कर के,
जैसे मेरे भीतर किसी शौचालय मे,
एक साथ फैल गए हों
पेशाब और टट्टी, हजारों लोगो के,
एक काला सा सन्नाटा पसर जाता है,
जहां जलने लगती हूँ मैं तेज़ाब की गंध से,
एक आधे भरे शराब के गिलास मे,
तैरती, डूबती, एक मक्खी जैसा महसूस करती हूँ मैं,
और उस गिलास के शीशे
अंदर धँसते जाते हैं.....मेरी पसलियों, मेरी आँखों, मेरे गुर्दों मे,
लेकिन जानते हो??
ये गंध, ये सन्नाटे, ये जख्म,
आज बस मेरे लिए हैं.....
तुम अधजली एक सिगरेट रख दो मेरे पैरों के पास,
ओढ़ लूँ आज उसे मैं और दिखावा करूँ
गहरी नींद का उसके धुएँ से लिपटकर,
उड़ेल दो ये शराब मेरे तकिये पर,
और बहने दो इसका नशा आज
मेरे सपनों मे.....
आओ, मेरे घर के सब आईने तोड़ दो,
फिर एक शीशे के टुकड़े को डुबो कर अपने खून मे,
रच डालो एक महाकाव्य,
मेरे बदन पर....
ये कपड़े का चिथड़ा जो मुझसे लिपटा है,
रक्त और स्वेद से झीना होने लगे,
मैं उस पल मे जलने लगूँ, तड़पूँ, मरने लगूँ,
फिर अचानक उसी पल मे मुस्कुराऊँ,
मेरी देह अब तुम्हारे बदन को तपाने लगे,
तुम्हारे मन को जलाए, तुम्हारी रूह को झुलसा दे,
तब मैं बोलूँ तुमसे,
तुम्हारी साँसों से छूटकर, आँखों मे आँखें डाले,
मुझे सुलगा दे ऐसा कोई अंगार नहीं हो सकता,
मुझे यकीन है मुझे तुमसे
कभी प्यार नहीं हो सकता......





photo from google.

2 comments:

दिगम्बर नासवा said...

Uff ... Jabardast ... Nostalgic ...
Kya baat hai ...

moulshree kulkarni said...

thanx a lot for your candid opinion...